नक्स’लियों की कै’द में रहे को’बरा कमांडो राकेश्वर सिंह ने बताई उन 6 दिनों की आपबीती

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भारतीय जवानों और नक्स’लियों के बीच मु’ठभेड़ हुई थी जिसके दौरान नक्स’लियों ने कोबरा के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को बं’दी बना लिया था लेकिन गुरुवार को नक्स’लियों से जवान को छुड़ा लिया गया। राकेश्वर सिंह छह दिनों तक नक्स’लियों की कै’द में रहे। कैद से रिहा होने के बाद उन्होंने इन छह दिनों की कहानी बताई। जिसमे कई बात निकलकर सामने आई हैं ।

राकेश्वर सिंह मनहास ने बताया कि 3 अप्रैल को जब हमारी नक्स’लियों के साथ मु’ठभेड़ हुई तो वे नक्स’लियों के बीच घिर गए थे। आपको पता होगा कि नक्स’लियों के बीच हुई मु’ठभेड़ में हमारे 22 वीर जवान श’हीद हुए थे जबकि 30 से अधिक घा’यल हो गये थे जिनका अभी इलाज चल रहा है। नक्स’लियों के बीच घिरने के बाद मनहास ने उन्‍हें आत्‍मसमर्पण करने के लिए कहा था।

राकेश्वर सिंह को समझ नहीं आई उनकी भाषा

सरेंडर करने के बाद उनको कहां-कहां ले जाया गया उनको इसका कोई अता पता नहीं है। जब भी न’क्सली उन्हें किसी स्थान पर ले जाते उस दौरान उनकी आंख पर पट्टी बांध दी जाती थी। राकेश्वर सिंह के अनुसार वे लोग स्थानीय बोली में बात कर रहे थे और उनकी भाषा उन्हें समझ नहीं आई। नक्स’लियों ने मनहास को कैद करने के बाद राज्‍य सरकार से इस मामले में मध्यस्थ नियुक्त करने की मांग की थी।

ख़बरों के मुताबिक बस्तर के वयोवृद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता धर्मपाल सैनी और गोंडवाना समाज के प्रमुख मुरैया तरेम कुछ स्थानीय लोगों के साथ जंगल गए थे। इन दोनों ने नक्स’लियों से बातचीत की और जवान को रिहा करने की अपील की। नक्स’लियों ने टेकलमेटा गांव के पास जंगल में 20 गांवों से आदिवासियों को बुलाकर जनअदालत लगाई।

CRPF के डीआइजी कोमल सिंह को सौंपा गया

भारी भीड़ के बीच नक्स’लियों ने जवान को मु’ठभेड़ के छठे दिन धर्मपाल सैनी के हवाले किया। जिसके बाद नक्स’लियों ने उनकी बात मानते हुए जवान राकेश्वर सिंह मनहास को बाइक से तर्रेम कैंप लाकर CRPF के डीआइजी कोमल सिंह को सौंप दिया।

वहां बातचीत के बाद नक्स’लियों ने जनअदालत लगाकर जवान को रिहा किया। जवान राकेश्वर सिंह मनहास को बाइक से तर्रेम कैंप लाकर सीआरपीएफ के डीआइजी कोमल सिंह को सौंपा गया। बता दें कि 91 वर्षीय धर्मपाल सैनी बस्तर के जाने माने गांधीवादी कार्यकर्ता हैं। धर्मपाल सैनी की कहानी बस्तर का गांधी बनने की शुरुआत साठ के दशक से शुरू होती है।

उस दौरान उन्होंने बस्तर से जुड़ी एक खबर पढ़ी, जिसमें लड़कियों ने छे’ड़छा’ड़ करने वालों का जमकर मुकाबला किया था। खबर युवा सैनी के मन में घर कर गई। तब वे विनोबा भावे के शिष्य हुआ करते थे। सैनी के मन में लगातार आ रहा था कि बस्तर के युवा बेहद बहादुर हैं और उनकी ऊर्जा को सही दिशा देने की जरूरत है। तब से उन्होंने समाजसेवा शुरू कर दी।

धर्मपाल सैनी ने आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था और शानदार एथलीट हुआ करते थे। शारीरिक वर्जिश में उन्हें खूब दिलचस्पी थी। धर्मपाल सैनी को साल 1992 में पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

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